स्वागत

मेरे 'शब्दों के शहर' में आप का हार्दिक स्वागत है। मेरी इस दुनिया में आप को देशप्रेम, गम, ख़ुशी, हास्य, शृंगार, वीररस, आंसु, आक्रोश आदि सब कुछ मिलेगा। हाँ, नहीं मिलेगा तो एक सिर्फ तनाव नहीं मिलेगा। जिंदगी ने मुझे बहुत कुछ दिया है। किस्मत मुज पर बहुत मेहरबान रही है। एसी कोई भावना नहीं जिस से किस्मत ने मुझे मिलाया नहीं। उन्हीं भावनाओं को मैंने शब्दों की माला में पिरोकर यहाँ पेश किया है। मुझे आशा है की मेरे शब्दों द्वारा मैं आप का न सिर्फ मनोरंजन कर सकूँगा बल्कि कुछ पलों के लिए 'कल्पना-लोक' में ले जाऊंगा। आइये आप और मैं साथ साथ चलते हैं शब्दों के फूलों से सजी कल्पनाओं की रंगीन दुनिया में....

Thursday 30 August 2012

स्वप्न संकेत

कुछ दिनों पहले मैंने 'विद्वान स्वप्न' पोस्ट लिखी थी। जिस में लिखा था कि कुछ स्वप्न हमें भविष्य संबंधित संकेत देते हैं। आज मैं मेरा अनुभव बाँट रहा हूँ। ये अनुभव भूकंप के दिन यानि ता.26।01।2001 के दिन हुआ था।

स्वप्न मुझे सुबह 4 बजे के आसपास आया था। स्वप्न में मैँने मेरी दादी की अर्थी का दृश्य देखा। दृश्य में मुझे अर्थी को सिर की ओर कंधा देनेवाले दो शख्स दिखाई दे रहे थे। असामान्य बात ये थी कि वे दोनों स्त्रीयाँ थी। एक मेरी बहन व दूसरी साली थी। जहाँ तक मुझे पता है किसी भी भारतीय समाज में महिलाओं द्वारा कंधा देने का रिवाज नहीं है। मैं अर्थी के साथ चल रहा था। अचानक लगा कि जैसे मेरी दादी ने अर्थी में सोये सोये मुज से कहा "याद रखना मैं तो जा रही हूँ पर तुझे सोने से ज्यादा कुछ देकर जा रही हूँ।" और मेरी आँख खुल गई।
 मैं सुबह 8:45 बजे यह स्वप्न डायरी में लिखने के लिए बैठा। छट्ठी या सातवीं पंक्ति लिख रहा था की भूकंप हुआ। चूँकि मैं दसवीं मंजिल पर रहता हू। घर से बाहर जाने के सारे रास्ते बंद थे। लिफ्ट में जाना नहीं चाहिए। ज्यादा मंजिल हो तो सीडीयों में भी नहीं जाना चाहिए। सब से पहले सीढ़ियों के टूटने का खतरा रहता है। सो मैं, गौरी (मेरी पत्नी) व बेटी अर्चना एक दूजे को पकड़कर ड्रॉईँग रूम के कोने में बैठ गये। भूकंप के बढ़ते कंपन को महसूस किया। एसा लग रहा था हम बहुत बड़े झुनझुने में बैठे हैं। कोई झुनझुने को जोर जोर से हिला रहा है। भूकंप के हर 'झोले' में लग रहा था कि अब गये की तब गये। छत पर लगा पंखा दो या तीन बार छत से टकरा गया। फिर कंपन कम होने लगा। भूकंप के रूकने पर पापा के घर जाने के लिए रवाना हुए। पूरा टावर खाली हो चुका था। वैसे भी उस वक्त टावर में छट्ठी मंजिल के बाद 10वीं पर हम ही रहते थे। बीच की मंजिलोँ पर कन्स्ट्रक्शन का कार्य जारी था। टावर में सिर्फ पंद्रह परिवार ही रहते थे। पापा के घर जाते हुए सपना याद आया। सपने में दादी की अर्थी से निकले शब्द याद आये। मुझे सोने से ज्यादा क्या मिला है समझ में आया। हम तीनों को नवजीवन मिला था।


आज भी जब वो घटना याद करता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कभी कभी सोचता हूँ 'एक पर एक फ्री' का मार्केटींग का दौर है। उपरवाले ने मुझे 37 साल (उस वक्त मेरी आयु थी) पर कितने फ्री साल दिए हैं?

हाँ एक स्वप्न संकेत का बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा रह गया। स्वप्न में दो स्त्रीयाँ अर्थी को कंधा दे रही थी। उस भूकंप से बहुत जानहानी हुई थी। कई कस्बों, गाँवो में स्त्रीयोँ ने अर्थीयोँ को कंधा दिया था। एसा होगा ये संकेत स्वप्न ने मुझे दिया था।ये था स्वप्न के पूर्व संकेत का मेरा अनुभव, जो स्वप्न के पूर्व संकेतों की बात निकलने पर दोस्तों से बाँटने का मन होने पर आप सब से बाँटा है।और कोई माने या ना माने मैं निश्चित रुप से मानता हूँ कि स्वप्न पूर्व संकेत देते हैं।
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महेश सोनी



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