सरस्वती पाठशाला को रंगबिरंगी लड़ियों से सजाया गया था। कागज की लड़ियाँ चमचमा रही थी। मैदान में एक ओर मंच लगाया था। मंच सज्जा को भी खूबसूरती से सजाया गया था। पाठशाला के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में शानदार रंगारंग कार्यक्रम रखा गया था। हर कोई उत्साहित था क्यों कि राज्य के विख्यात साहित्यकार सिद्धराज त्रिवेदी कार्यक्रम के मुख्य मेहमान थे। वे दसवीं कक्षा तक इसी पाठशाला में पढ़े थे। मंच पर आचार्य सूर्यकान्त त्रिपाठी, उपाचार्य नीरज पंडित एवं सिद्धराज त्रिवेदी कुर्सियों पर विराजमान थे।
रंगारंग कार्यक्रम में बच्चों ने गीत, अभिनय, कविता आदि पेश किये। कार्यक्रम के अंत में आचार्य ने माइक से बच्चों को संबोधित करते हुए कहा "जैसा की हम जानते हैं त्रिवेदीजी प्रसिद्ध व विद्वान साहित्यकार हैं। हम सब ये भी जानते हैं और ये हमारे लिए गर्व की बात हैं की वे दसवीं कक्षा तक इसी पाठशाला में पढ़े हैं। मैं उन से विनती करता हूँ। वे बच्चों को आशीर्वाद दें; साथ ही ये अनुरोध भी करता हूँ। वे हमें अपने विद्यार्थी जीवन का इस पाठशाला से जुड़ा कोई यादगार अनुभव बताएं।"
सिद्धराजजी ने बच्चों को आर्शिवचन देने के बाद कहा "मैं जो अनुभव बताने जा रहा हूँ। वो मेरे पूरे विद्यार्थी जीवन का यादगार अनुभव है। ये कहूँ तो गलत न होगा की उसी अनुभव के कारण मैं साहित्यकार बना। ये कहकर वे घटना सुनाने लगे।
ये घटना उन दिनों की है जब मैं चौथी कक्षा में था। पढने में बिलकुल कमजोर था। बड़ी मुश्किल से उत्तीर्ण होता था। मैं पढने में जरुर कमजोर था मगर मेरे अक्षर बहुत सुन्दर थे। लिखावट बहुत ख़ूबसूरत थी। मेरे कई शिक्षक वार्षिक अभ्यासक्रम का चार्ट मुज से बनवाते थे। उसी साल एक नए विद्यार्थी ने मेरी कक्षा में दाखिला लिया था। उस का नाम रजत था। वो थोडा बदमाश किस्म का था। पढने में होशियार था। उस की याददाश्त बहुत अच्छी थी। मगर अक्षर बहुत ख़राब थे। उसे अक्षर ख़राब होने के कारण लिखना अच्छा नहीं लगता था। वो लिखने से हमेशा कतराता था।
रजत ने एक दिन सुबह पाठशाला शुरू होने से पहले मुझे घेरकर पूछा,
"ए सुनो सुना है, तुम्हारे अक्षर बहुत सुन्दर है? तुम्हारी लिखावट ख़ूबसूरत है?"
मैंने कहा "हाँ"
वो धमकीभरे अंदाज में बोला " आज दोपहर की आधी छुट्टी में कहीं मत जाना। कक्षा में ही रहना तुम से थोडा सा कम करवाना है। और ख़बरदार जो मेरी बात अनसुनी की तो मास्टरजी से कहकर डांट पडवा दूंगा। पता है न मैं वर्ग का मुखिया हूँ।"
मैं डर गया। पढाई में कमजोर होने के कारण अक्सर डांट पड़ती रहती थी। एसे में उस की शिकायत के कारण ज्यादा डांट पड सकती थी। आधी छुट्टी में उस ने आधी छुट्टी से पहले पढाये गए विषयों का गृहकार्य करवाया लिया। मुझे करना पड़ा। गृहकार्य पढने पर उसे पता चला मैंने ज्यादातर उत्तर गलत लिखे थे। दुसरे दिन उस का भी रास्ता खोज लिया। उस ने कहा " मैं बोलता हूँ तू लिख और थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोलते हुए लिख जिस से मुझे पता चले की तू गलत तो नहीं लिख रहा। मुझे वैसा ही करना पड़ा। फिर वो रोज गृहकार्य करवाने लगा। मुझे दो बार गृहकार्य करना पड़ता। पाठशला में उस का व घर पर मेरा। एक बार मैंने आचार्य से शिकायत की तो वे बोले " अच्छा है तेरे जैसे कमजोर को होशियार बनाने का ये तरीका सही है।"
पर थोड़े दिनों बाद मुझे फायदा होने लगा। ऊँची आवाज़ में बोलते हुए लिखना मेरी आदत बन गई। इस आदत के कारण उत्तर याद रहने लगे। इस बात का सुबूत तब मिला। जब वक दिन अपना गृहकार्य करते वक्त मैंने दो तीन प्रश्नों के उत्तर गाइड या किताब में देखे बिना लिख दिए। वर्ना मैं गाइड या किताब में देखे बिना उत्तर लिख नहीं सकता था। किताब या गाइड में देखकर ही गृहकार्य करता था। उस में काफी समय लगता था। थोड़े दिनों बाद किताब या गाइड में देखे बिना आठ दस प्रश्नों के उत्तर लिख दिए। इस तरह उत्तर लिखना मुझे अच्छा लगा। अनजाने में ही सही पर बोलते हुए लिखने की आदत के कारण मेरी यादशक्ति बढ़ने लगी थी।
इस तरह गृहकार्य करने के कारण मुझे एक और फायदा हुआ। मुझे खेलने के लिए ज्यादा समय मिलने लगा। पहले ढेर सारा समय किताब या गाइड में से उत्तर खोजने में लग जाता था। जो बचने लगा। बचा हुआ समय खेलने के लिए मिलने लगा। पढाई के पाठ याद रहना तथा खेलने के लिए ज्यादा समय मिलना: यूँ दो तरफ़ा फायदा होने के कारण मुझे दो बार गृहकार्य करने में अच्छा लगने लगा। फिर तो मैं बड़ी लगन से रजत का गृहकार्य करने लगा। ताकि जब मैं मेरा गृहकार्य करूँ तो कम समय में कर सकूं। बचे समय का फायदा उठाकर ज्यादा समय खेल सकूँ।
यादशक्ति बढ़ने के कारण इम्तिहान में भी फायदा हुआ। अर्ध वार्षिक इम्तिहान में अच्छे मार्क्स मिले। जानकारी बढ़ने के कारण इतिहास,भूगोल व कविता में मज़ा आने लगा। वार्षिक इम्तिहान में और भी अच्छे मार्क्स मिले। उस के बाद मैं वाचन भी ऊँची आवाज़ में करने लगा। मेरा लेखन व वाचन बढ़ता गया। बढ़ते बढ़ते एसा बढ़ा कि बड़ा होकर मैं साहित्यकार बन गया।
आज मुझे एक कहावत याद आती है 'फूल हमेशा सुगन्धित करते हैं।' रजत द्वारा जबरदस्ती करवाए गए गृहकार्य से मुझे फायदा हुआ क्यों कि वो होशियार विद्यार्थी था। उस के संग ने मुझे भी होशियार बना दिया। वो मुज से जबरदस्ती गृहकार्य न करवाता तो शायद मैं कमजोर विद्यार्थी ही रहता। साहित्यकार न बनता।
तो, प्यारे बच्चों ये था मेरे विद्यार्थी जीवन का सब से यादगार व महत्वपूर्ण अनुभव जिस ने मेरी जिन्दगी बदल दी। रजत नाम के एक फूल ने मेरे जीवन में सुगंध भर दी।
------------------------------------------------------------------------------------------------
गुजराती बाल-साप्ताहिक 'फूलवाड़ी'[करीब दो साल पहले]तथा'सहज बालआनंद' [ऑगस्ट 2012]में छपी मेरी कहानी का उचित परिवर्तनों के साथ हिंदी अनुवाद
रंगारंग कार्यक्रम में बच्चों ने गीत, अभिनय, कविता आदि पेश किये। कार्यक्रम के अंत में आचार्य ने माइक से बच्चों को संबोधित करते हुए कहा "जैसा की हम जानते हैं त्रिवेदीजी प्रसिद्ध व विद्वान साहित्यकार हैं। हम सब ये भी जानते हैं और ये हमारे लिए गर्व की बात हैं की वे दसवीं कक्षा तक इसी पाठशाला में पढ़े हैं। मैं उन से विनती करता हूँ। वे बच्चों को आशीर्वाद दें; साथ ही ये अनुरोध भी करता हूँ। वे हमें अपने विद्यार्थी जीवन का इस पाठशाला से जुड़ा कोई यादगार अनुभव बताएं।"
सिद्धराजजी ने बच्चों को आर्शिवचन देने के बाद कहा "मैं जो अनुभव बताने जा रहा हूँ। वो मेरे पूरे विद्यार्थी जीवन का यादगार अनुभव है। ये कहूँ तो गलत न होगा की उसी अनुभव के कारण मैं साहित्यकार बना। ये कहकर वे घटना सुनाने लगे।
ये घटना उन दिनों की है जब मैं चौथी कक्षा में था। पढने में बिलकुल कमजोर था। बड़ी मुश्किल से उत्तीर्ण होता था। मैं पढने में जरुर कमजोर था मगर मेरे अक्षर बहुत सुन्दर थे। लिखावट बहुत ख़ूबसूरत थी। मेरे कई शिक्षक वार्षिक अभ्यासक्रम का चार्ट मुज से बनवाते थे। उसी साल एक नए विद्यार्थी ने मेरी कक्षा में दाखिला लिया था। उस का नाम रजत था। वो थोडा बदमाश किस्म का था। पढने में होशियार था। उस की याददाश्त बहुत अच्छी थी। मगर अक्षर बहुत ख़राब थे। उसे अक्षर ख़राब होने के कारण लिखना अच्छा नहीं लगता था। वो लिखने से हमेशा कतराता था।
रजत ने एक दिन सुबह पाठशाला शुरू होने से पहले मुझे घेरकर पूछा,
"ए सुनो सुना है, तुम्हारे अक्षर बहुत सुन्दर है? तुम्हारी लिखावट ख़ूबसूरत है?"
मैंने कहा "हाँ"
वो धमकीभरे अंदाज में बोला " आज दोपहर की आधी छुट्टी में कहीं मत जाना। कक्षा में ही रहना तुम से थोडा सा कम करवाना है। और ख़बरदार जो मेरी बात अनसुनी की तो मास्टरजी से कहकर डांट पडवा दूंगा। पता है न मैं वर्ग का मुखिया हूँ।"
मैं डर गया। पढाई में कमजोर होने के कारण अक्सर डांट पड़ती रहती थी। एसे में उस की शिकायत के कारण ज्यादा डांट पड सकती थी। आधी छुट्टी में उस ने आधी छुट्टी से पहले पढाये गए विषयों का गृहकार्य करवाया लिया। मुझे करना पड़ा। गृहकार्य पढने पर उसे पता चला मैंने ज्यादातर उत्तर गलत लिखे थे। दुसरे दिन उस का भी रास्ता खोज लिया। उस ने कहा " मैं बोलता हूँ तू लिख और थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोलते हुए लिख जिस से मुझे पता चले की तू गलत तो नहीं लिख रहा। मुझे वैसा ही करना पड़ा। फिर वो रोज गृहकार्य करवाने लगा। मुझे दो बार गृहकार्य करना पड़ता। पाठशला में उस का व घर पर मेरा। एक बार मैंने आचार्य से शिकायत की तो वे बोले " अच्छा है तेरे जैसे कमजोर को होशियार बनाने का ये तरीका सही है।"
पर थोड़े दिनों बाद मुझे फायदा होने लगा। ऊँची आवाज़ में बोलते हुए लिखना मेरी आदत बन गई। इस आदत के कारण उत्तर याद रहने लगे। इस बात का सुबूत तब मिला। जब वक दिन अपना गृहकार्य करते वक्त मैंने दो तीन प्रश्नों के उत्तर गाइड या किताब में देखे बिना लिख दिए। वर्ना मैं गाइड या किताब में देखे बिना उत्तर लिख नहीं सकता था। किताब या गाइड में देखकर ही गृहकार्य करता था। उस में काफी समय लगता था। थोड़े दिनों बाद किताब या गाइड में देखे बिना आठ दस प्रश्नों के उत्तर लिख दिए। इस तरह उत्तर लिखना मुझे अच्छा लगा। अनजाने में ही सही पर बोलते हुए लिखने की आदत के कारण मेरी यादशक्ति बढ़ने लगी थी।
यादशक्ति बढ़ने के कारण इम्तिहान में भी फायदा हुआ। अर्ध वार्षिक इम्तिहान में अच्छे मार्क्स मिले। जानकारी बढ़ने के कारण इतिहास,भूगोल व कविता में मज़ा आने लगा। वार्षिक इम्तिहान में और भी अच्छे मार्क्स मिले। उस के बाद मैं वाचन भी ऊँची आवाज़ में करने लगा। मेरा लेखन व वाचन बढ़ता गया। बढ़ते बढ़ते एसा बढ़ा कि बड़ा होकर मैं साहित्यकार बन गया।
आज मुझे एक कहावत याद आती है 'फूल हमेशा सुगन्धित करते हैं।' रजत द्वारा जबरदस्ती करवाए गए गृहकार्य से मुझे फायदा हुआ क्यों कि वो होशियार विद्यार्थी था। उस के संग ने मुझे भी होशियार बना दिया। वो मुज से जबरदस्ती गृहकार्य न करवाता तो शायद मैं कमजोर विद्यार्थी ही रहता। साहित्यकार न बनता।
तो, प्यारे बच्चों ये था मेरे विद्यार्थी जीवन का सब से यादगार व महत्वपूर्ण अनुभव जिस ने मेरी जिन्दगी बदल दी। रजत नाम के एक फूल ने मेरे जीवन में सुगंध भर दी।
------------------------------------------------------------------------------------------------
गुजराती बाल-साप्ताहिक 'फूलवाड़ी'[करीब दो साल पहले]तथा'सहज बालआनंद' [ऑगस्ट 2012]में छपी मेरी कहानी का उचित परिवर्तनों के साथ हिंदी अनुवाद
कुमार अहमदाबादी/ महेश सोनी
No comments:
Post a Comment