स्वागत

मेरे 'शब्दों के शहर' में आप का हार्दिक स्वागत है। मेरी इस दुनिया में आप को देशप्रेम, गम, ख़ुशी, हास्य, शृंगार, वीररस, आंसु, आक्रोश आदि सब कुछ मिलेगा। हाँ, नहीं मिलेगा तो एक सिर्फ तनाव नहीं मिलेगा। जिंदगी ने मुझे बहुत कुछ दिया है। किस्मत मुज पर बहुत मेहरबान रही है। एसी कोई भावना नहीं जिस से किस्मत ने मुझे मिलाया नहीं। उन्हीं भावनाओं को मैंने शब्दों की माला में पिरोकर यहाँ पेश किया है। मुझे आशा है की मेरे शब्दों द्वारा मैं आप का न सिर्फ मनोरंजन कर सकूँगा बल्कि कुछ पलों के लिए 'कल्पना-लोक' में ले जाऊंगा। आइये आप और मैं साथ साथ चलते हैं शब्दों के फूलों से सजी कल्पनाओं की रंगीन दुनिया में....

Monday 3 December 2012

खतरनाक दीमक

उस आदमी का गज़लें कहना कुसूर होगा
दुखती रगों को छूना जिस का शउर होगा
द्विजेन्द्र द्विज

मैंने द्विजेन्द्र द्विज की दो चार गज़लें हीं पढ़ी हैं। मगर उन की ग़ज़लों ने मुझे काफी प्रभावित  किया है। क्यों प्रभावित किया है। प्रस्तुत ग़ज़ल के दो शेर समझा देंगे। प्रस्तुत मत्ले में शायर कहते हैं। जिसे दूसरों के दुःख, दर्द से, पीर से खेलने में मजा आता है। जो किसी की दुखती नस पर उंगली रखकर आनंद लेता है। उस का काव्य कहना या लिखना गुनाह के बराबर है। क्यों? क्यों की काव्य साहित्य है। साहित्य का सृजन समाज के उत्थानके लिए, प्रगति के लिए किया जाता हैं; व्यक्ति को हताशा निराशा की खाई से निकलकर सफलता के पथ पर चलने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से किया जाता है। व्यक्ति  व समाज में नवचेतना के  की लिए किया जाता है ना की उसे हताश निराश या पस्त करके के लिए। जब की दुखती रग पर हाथ रखने की आदतवाला व्यक्ति क्या करेगा? अपने शब्दों द्वरा किसी की खिल्ली उडाएगा, किसी को आहात करेगा। क्यों की व्यक्ति वही लिखता है। उन्हीं भावों को को पेश करता है। जो उस के स्वभाव में रचे बसे होते हैं। जब की साहित्य का उद्देश्य वो नहीं है।
दीमक लगी हुई हो जिस पेड़ की जड़ों में
कैसे भला फिर उस के पत्तों पर नूर होगा

कवि हमेशा में सागर भरता है। कम शब्दों में बहुत कह देता है। मेरा मन कहता है की मैं इसे बच्चो से जूडे दो विषयों से जोड़कर विश्लेषित करूँ। हालाँकि दोनों विषय आपस में भी जुड़े हैं। बच्चों के पालन पोषण व शिक्षा व्यवस्था दोनों को आज दीमक लग चुकी है।

पहले बच्चो को पालने के विषय को देखते हैं। आज कल माता-पिता  बच्चों का पालन-पोषण किस उद्देश्य से करते हैं? बच्चा बड़ा होकर सच्चा  इमानदार बनाने के या रुपैया पैसा छलकानेवाला 'ATM' बनाने के उद्देश्य से? आज के नब्बे प्रतिशत माता-पिता बच्चे को ATM बनाना चाहते हैं। ना की अच्छा सच्चा व नेक इंसान बनाना चाहते हैं। बच्चे को ATM बनाने की सोच एक वैचारिक दीमक है। जो मापा-पिता रूपी पेड़ की जड़ो को खोखला कर रही है। जब जड़ ही खोखली होगी तो पेड़ फलेगा फूलेगा कहाँ से?

शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा व्यवस्था भी बच्चों के पालन-पोषण से जुडी कड़ी है। आज की शिक्षा व्यवस्था महज कागजी प्रमाण-पत्र प्राप्त कर के इंसान के ATM बनने का साधन बनकर रह गई है। शिक्षा के मुख्य उद्देश्य क्या होने चाहियें? बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास हो, निर्णय शक्ति विकसित हो, संकट के समय स्वस्थता के कार्य करने की क्षमता बढे, परिवार समाज व  के हित में कार्य करने व जीने की भावना बढे। कानून का  करना सीखें। ये सब शिक्षा के मुख्य उद्देश्य होने चाहियें। कथित रूप से आज भी है। मगर .........  वास्तविकता क्या है। सब जानते हैं।

हालांकि  इस में व्यवस्था-तंत्र का भी पूरा हाथ है। जो तंत्र वाहियात विज्ञापनों को प्रसारण की अनुमति देती है। उसे कैसे जिम्मेदार ना मानें? कुछ दिन पहले एक विज्ञापन देखा था। वो ती टी 20-20 का विज्ञापन था। उस में आज का नया कहा जानेवाला रोक़ स्टार कहता है "ये टी 20 क्रिकेट है। ये ना तमीज से खेला जाता है ना तमीज से देखा जाता है। बदतमीजी को बढ़ावा देनेवाले विज्ञापन को प्रसारण की मंजूरी देनेवाले 'एडमिनिस्ट्रेशन" के इरादे क्या हैं? क्या ये भी एक प्रकार को वैचारिक दीमक नहीं जो व्यवस्था-तंत्र को लग गई है?

यहाँ एक छोटी सी घटना का उल्लेख करना चाहता हूँ।
कोई दो सवा दो साल पहले मैं किसी कार्य के सिलसिले में दूरदर्शन केंद्र गया था। तब वहां एक कार्यक्रम की शूटिंग हो रही थी। कार्यक्रम का विषय माताओं और बच्चों के बीच खड़े होनेवाले प्रश्नों का था। मंच पर दो तीन कथित [मैं उन्हें कथित ही कहूँगा] एक्सपर्ट बैठे थे। करीब 15-20 स्त्रियाँ कार्यक्रम में दर्शकों के रूप में हिस्सा ले रही थी। चर्चा के दौरान एक स्त्री ने प्रश्न पूछा " हमारे बच्चों को कौन 'डिश' बहती है? वो क्या चाहता है? उसे क्या अच्छा लगता है?। ये सब हम कैसे जान सकते हैं?

मुझे आश्चर्य हुआ। एक माता को अपने बच्चे के बारे में जानने के लिए एक्सपर्ट का सहारा लेना पड़े। समाज के लिए इस से ज्यादा दयनीय परिस्थिति क्या होगी? ये शायद सब से भयंकरतम दीमक है। जो समाज रूपी वृक्ष को लगी है।

ता-18-11-2012 के दिन गुजराती दैनिक 'जयहिंद' में मेरी कॉलम 'अर्ज़ करते हैं' में छपे मेरे लेख का हिंदी अनुवाद
कुमार अहमदाबादी/ अभण अमदावादी


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