उड़ के यूँ छत से कबूतर मेरे सब जाते हैं
जैसे इस मुल्क से मजदूर अरब जाते हैं
मुनव्वर राणा
मुनव्वर राणा सशक्त शायर है। मत्ले के बारे में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं। मत्ला खुद बोल रहा है। सामान्यतया इंसान की खूबियाँ या खामियां बताने के लिए पशु पक्षियों का सहारा लिया जाता है। जैसे की नजर गिद्ध जैसी है, वफ़ादारी कुत्ते जैसी है, कबूतर सा भोला है, लोमड़ी सा चालाक है। ऐसे कई उदहारण मिल जायेंगे। इस शेर में शायर ने कबूतरों की मजदूरों से तुलना की है। मजदूरों के अरब गमन की घटना को कबूतरों की उड़ने के साथ तुलना की है।
हमने बाज़ार में देखे हैं घरेलू चहेरे
मुफ़लिसी तुज से बड़े लोग भी दब जाते हैं
गरीबी अच्छे अच्छों को बिकने पर मजबूर कर देती है। शायर ने घरेलू शब्द द्वारा उस वर्ग की और संकेत किया है। जिन का बाज़ार से ज्यादा लेना देना नहीं है। गरीबी इंसान को तोड़ देती है। इंसान वो सबकुछ करने के लिए तैयार हो जाता है। जिस के लिए उस की अंतरात्मा कभी अनुमति नहीं देती।
कौन हँसते हुए हिजरत पे हुआ है राजी
लोग आसानी से घर छोड़ के कब जाते हैं
कोई व्यक्ति आसानी से हिजरत के लिए तैयार नहीं होता। इंसान को जहाँ दाना-पानी मिलता है। वह स्थान वो छोड़ना नहीं चाहता। बहुत बड़ा या महत्पूर्ण कारण हो तो ही व्यक्ति हिजरत के लिए तैयार होता है। जैसे कि 1947 में करोड़ों लोगों ने हिजरत की थी। बल्कि कहना चाहिए करनी पड़ी थी।
लोग मशकूक निगाहों से हमें देखते हैं
रात को देर से घर लौट के जब आते हैं
इस शेर का अर्थ जितना सरल लग रहा है। उतना है नहीं ।इंसान जब चाहें अपने घर आयें। उसे शंकास्पद नज़रों से देखने की क्या जरूरत है?
मगर मित्रों असामान्य लगनेवाली हर घटना व्यक्ति का ध्यान खींचती है। खींचना भी चाहिए। रोजमर्रा के क्रम से अलग घटनेवाली घटना की और लोगों का ध्यान जाता ही है। जाना भी चाहिए। ऐसी घटना न सिर्फ ध्यान खींचती है। बल्कि शंका के बीज भी बोती है। हम कई बार न्यूज़ चैनलों में देखते हैं।किसी राजनीतिक पक्ष की सभा या बैठक या मीटिंग निश्चित समय पर शुरू न हो तो अटकलों का बाज़ार गर्म हो जाता है। दो देशों की की राजनीतिक मंत्रणाएँ तय वक्त पर शुरू न हो तो शंका कुशंकाएँ होने लगती है। इसी तरह शाम एको एक निश्चित समय पर घर पहुँचानेवाला व्यक्ति घर न पहुंचे तो लोग अपने हिसाब से अंदाजा लगाना शुरू कर देते हैं। बच्चे का स्कूल से घर वापस आने का समय पांच बजे का हो और वो सवा पांच तक न आये। तो, उस के बाद बीतनेवाला हर पल प्रत्येक व्यक्ति के मन में चिंता पैदा करता है। जैसा की मैंने लिखा रोजमर्रा के घटनाक्रम से अलग घटनेवाली घटना पर लोगों का ध्यान जाता ही है और जाना भी चाहिए। यही नागरिक जागरूकता है।
ता-20-01-2013 के दिन गुजराती वर्तमान-पत्र 'जयहिंद' में मेरी कालम 'अर्ज़ करते हैं' में छपे लेख का अनुवाद
कुमार अहमदाबादी
[गुजराती कालम अभण अमदावादी के नाम से लिखता हूँ]
जैसे इस मुल्क से मजदूर अरब जाते हैं
मुनव्वर राणा
मुनव्वर राणा सशक्त शायर है। मत्ले के बारे में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं। मत्ला खुद बोल रहा है। सामान्यतया इंसान की खूबियाँ या खामियां बताने के लिए पशु पक्षियों का सहारा लिया जाता है। जैसे की नजर गिद्ध जैसी है, वफ़ादारी कुत्ते जैसी है, कबूतर सा भोला है, लोमड़ी सा चालाक है। ऐसे कई उदहारण मिल जायेंगे। इस शेर में शायर ने कबूतरों की मजदूरों से तुलना की है। मजदूरों के अरब गमन की घटना को कबूतरों की उड़ने के साथ तुलना की है।
हमने बाज़ार में देखे हैं घरेलू चहेरे
मुफ़लिसी तुज से बड़े लोग भी दब जाते हैं
गरीबी अच्छे अच्छों को बिकने पर मजबूर कर देती है। शायर ने घरेलू शब्द द्वारा उस वर्ग की और संकेत किया है। जिन का बाज़ार से ज्यादा लेना देना नहीं है। गरीबी इंसान को तोड़ देती है। इंसान वो सबकुछ करने के लिए तैयार हो जाता है। जिस के लिए उस की अंतरात्मा कभी अनुमति नहीं देती।
कौन हँसते हुए हिजरत पे हुआ है राजी
लोग आसानी से घर छोड़ के कब जाते हैं
कोई व्यक्ति आसानी से हिजरत के लिए तैयार नहीं होता। इंसान को जहाँ दाना-पानी मिलता है। वह स्थान वो छोड़ना नहीं चाहता। बहुत बड़ा या महत्पूर्ण कारण हो तो ही व्यक्ति हिजरत के लिए तैयार होता है। जैसे कि 1947 में करोड़ों लोगों ने हिजरत की थी। बल्कि कहना चाहिए करनी पड़ी थी।
लोग मशकूक निगाहों से हमें देखते हैं
रात को देर से घर लौट के जब आते हैं
इस शेर का अर्थ जितना सरल लग रहा है। उतना है नहीं ।इंसान जब चाहें अपने घर आयें। उसे शंकास्पद नज़रों से देखने की क्या जरूरत है?
मगर मित्रों असामान्य लगनेवाली हर घटना व्यक्ति का ध्यान खींचती है। खींचना भी चाहिए। रोजमर्रा के क्रम से अलग घटनेवाली घटना की और लोगों का ध्यान जाता ही है। जाना भी चाहिए। ऐसी घटना न सिर्फ ध्यान खींचती है। बल्कि शंका के बीज भी बोती है। हम कई बार न्यूज़ चैनलों में देखते हैं।किसी राजनीतिक पक्ष की सभा या बैठक या मीटिंग निश्चित समय पर शुरू न हो तो अटकलों का बाज़ार गर्म हो जाता है। दो देशों की की राजनीतिक मंत्रणाएँ तय वक्त पर शुरू न हो तो शंका कुशंकाएँ होने लगती है। इसी तरह शाम एको एक निश्चित समय पर घर पहुँचानेवाला व्यक्ति घर न पहुंचे तो लोग अपने हिसाब से अंदाजा लगाना शुरू कर देते हैं। बच्चे का स्कूल से घर वापस आने का समय पांच बजे का हो और वो सवा पांच तक न आये। तो, उस के बाद बीतनेवाला हर पल प्रत्येक व्यक्ति के मन में चिंता पैदा करता है। जैसा की मैंने लिखा रोजमर्रा के घटनाक्रम से अलग घटनेवाली घटना पर लोगों का ध्यान जाता ही है और जाना भी चाहिए। यही नागरिक जागरूकता है।
ता-20-01-2013 के दिन गुजराती वर्तमान-पत्र 'जयहिंद' में मेरी कालम 'अर्ज़ करते हैं' में छपे लेख का अनुवाद
कुमार अहमदाबादी
[गुजराती कालम अभण अमदावादी के नाम से लिखता हूँ]