स्वागत

मेरे 'शब्दों के शहर' में आप का हार्दिक स्वागत है। मेरी इस दुनिया में आप को देशप्रेम, गम, ख़ुशी, हास्य, शृंगार, वीररस, आंसु, आक्रोश आदि सब कुछ मिलेगा। हाँ, नहीं मिलेगा तो एक सिर्फ तनाव नहीं मिलेगा। जिंदगी ने मुझे बहुत कुछ दिया है। किस्मत मुज पर बहुत मेहरबान रही है। एसी कोई भावना नहीं जिस से किस्मत ने मुझे मिलाया नहीं। उन्हीं भावनाओं को मैंने शब्दों की माला में पिरोकर यहाँ पेश किया है। मुझे आशा है की मेरे शब्दों द्वारा मैं आप का न सिर्फ मनोरंजन कर सकूँगा बल्कि कुछ पलों के लिए 'कल्पना-लोक' में ले जाऊंगा। आइये आप और मैं साथ साथ चलते हैं शब्दों के फूलों से सजी कल्पनाओं की रंगीन दुनिया में....

Tuesday 5 February 2013

पानी में चिंगारी

डराना चाहते हैं वो हमें धमकियां देकर
बड़े नादान है पानी को चिंगारी दिखाते हैं
वीरेंद्र खैर 'अकेला'

क्या पानी में आग लग सकती है?जो व्यक्ति धीर गंभीर व शांत हो।उसे कभी गुस्सा आ सकता है? जो व्यक्ति कूल माइंड हो।सारे कार्य सोच समझकर करता हो।उसे कोई व्यक्ति क्रोधित कर दे।एसा कम ही होता है।चिंगारी पानी में गिरकर ज्वलनशीलता गँवा देती है।ईस बात का आधार लेकर कवि बेहतरीन बात कही है।आदमी को चाहिए वो दिमाग शांत रखे।दिमाग शांत हो तो 'आग' लगानेवालों को सफलता नहीं मिलती।आदमी को हमेशा कूल माईँडेड रहना चाहिए।

ता.13।05।2012 के गुजराती दैनिक 'जयहिंद' में मेरी कॉलम 'अर्ज करते हैँ' में छपे लेख का अंश
कुमार अहमदाबादी
अभण अमदावादी

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